सोमवार, 11 अगस्त 2014

विचार प्रवाह

 बिना प्रयास के ही ध्यान में जो  आते रहते हैं -  उनसे कभी कभी हम परेशान हो जाते हैं तब हमें गुरु महाराज की प्रार्थना याद आती है :-

कृपा ऐसी हो अहंकार भूल जाएँ हम, 
घृणा विद्वेषमय विचार भूल जाएँ हम.

कुछ बुराई न करें किसी को बुरा न कहें ,
सदा बुराई का प्रचार भूल जाएँ हम.

बुरे के साथ भी अब रह सकें भले होकर , 
किसी  प्रतिकूल  का प्रतिकार भूल जाएँ हम.

हमारे द्वार पर शत्रु भी मिलने आए, 
दें उसे प्यार तिरस्कार भूल जाएँ हम।

सदा कुछ भी न रहेगा सहारा  किस का लें, 
छूट जायेंगे जो आधार भूल जाएँ हम.

अपना कर्त्तव्य न भूलें कहीं प्रमादी बन, 
किसी पर अपना जो अधिकार भूल जाएँ हम। 

बिना प्रयास के जो ध्यान में आते रहते, 
पंच भूतों के वे आकार भूल जाएँ हम।

त्याग हो जाय मोह ममता का शांति मिले,
मन से माना हुआ संसार भूल जाएँ हम। 

ध्येय है ज्ञेय है अविनाशी देहातीत स्वरुप, 
वस्तु के प्रति ममत्व प्यार भूल जाएँ हम। 

भूलते आये  हैं परमार्थ की बातें अब तक,
जगत में स्वार्थ का व्यवहार भूल जाएँ हम। 

याद रखें सदा उस सत्य को जिसमे  रहते , 
'पथिक'  असत को वार पार भूल जाएँ हम। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें