सोमवार, 11 अगस्त 2014

एक अविस्मरणीय प्रार्थना

 आज ५वें दर्जे तक के प्राइमरी स्कूल में  प्रात: काल पहुँचते ही गाये जाने वाली प्रार्थना याद आ गयी - शायद क्षुद्र   स्वार्थी इसमें दूरबीन से खोट ढूंढने का प्रयत्न करेंगे तब भी उन्हें इसमें साम्प्रदायिकता तो मिलने वाली नहीं -
प्रार्थना इस प्रकार है:-
"वह शक्ति हमें दो दयानिधे ,
कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें। 

पर सेवा पर उपकार में हम,
निज जीवन सफल बना जावें। 

हम दीन दुखी  निबलों बिकलों के,
सेवक बन संताप हरें। 

जो हैं अटके भूले भटके,
उनको तारें खुद तर जावें। 

निज धर्म कर्म मर्यादा का,
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे, 

जिस देश जाति  में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावे. 

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