संसार में जितने भी प्राणी हैं पसंद सबकी अपनी अपनी होती है -
जीवन की दिशा और दशा के निर्धारण में पसंद का बड़ा महत्व है। पसंद से ही मानव
लक्ष्य निर्धारण कर उसकी प्राप्ति के लिए संकल्प कर आगे बढ़ता है :जितनी देर लक्ष्य निर्धारण में लगती है उतनी ही गति में शिथिलता आ जाती है. जीवन में पूर्णता ही सर्वोत्तम लक्ष्य है -
वह जीवन क्या जिस जीवन में जीवन को पूर्ण बना न सके ,
वह अज्ञानी अभिमानी हैं जो मन का मोह मिटा न सके.
कोई बल-मद मन फूल रहे, ऊँचे पद पा कर झूल रहे ,
लेकिन वह शक्ति निरर्थक है जो काम किसी के आ न सके।
जो भ्रमवश भोगासक्त बने जो अपने मन के भक्त बने ,
विषयों से यदि न विरक्त बने सत्पथ में पैर बढ़ा न सके।
जिस संगति से सद्ज्ञान न हो कर्तव्य धर्म का ध्यान न हो,
हम उसे सुसंगति क्यों समझें जो हमें प्रकाश दिखा न सके.
मिटती है जिससे भ्रान्ति नहीं, मिलती है जिससे शांति नहीं ,
ऐ 'पथिक ' प्रेम का पथ वह क्या जो प्रियतम तक पहुंचा न सके;