मंगलवार, 12 अगस्त 2014

अपनी पसंद

संसार में जितने भी प्राणी हैं पसंद  सबकी अपनी अपनी होती है -  

जीवन की दिशा और दशा के निर्धारण में पसंद का बड़ा महत्व है।  पसंद से ही   मानव 
लक्ष्य निर्धारण  कर उसकी प्राप्ति के लिए  संकल्प कर आगे बढ़ता है :जितनी देर लक्ष्य निर्धारण में लगती है उतनी ही गति में शिथिलता आ जाती है. जीवन में पूर्णता ही सर्वोत्तम लक्ष्य है -

वह जीवन क्या जिस जीवन में जीवन को पूर्ण बना न सके , 
वह अज्ञानी अभिमानी हैं जो मन का मोह  मिटा न सके. 

कोई बल-मद मन फूल रहे, ऊँचे पद पा कर झूल रहे , 
लेकिन वह शक्ति निरर्थक है जो काम किसी के आ न सके।  

जो भ्रमवश भोगासक्त बने जो अपने मन के भक्त बने ,
विषयों से यदि न विरक्त बने सत्पथ में पैर बढ़ा न सके। 

जिस संगति  से सद्ज्ञान न हो कर्तव्य धर्म का ध्यान न हो, 
हम उसे सुसंगति क्यों समझें जो हमें प्रकाश दिखा न सके. 

मिटती है जिससे  भ्रान्ति नहीं, मिलती है जिससे शांति नहीं ,
ऐ 'पथिक ' प्रेम का पथ वह क्या जो  प्रियतम तक पहुंचा न सके;


 

सोमवार, 11 अगस्त 2014

विचार प्रवाह

 बिना प्रयास के ही ध्यान में जो  आते रहते हैं -  उनसे कभी कभी हम परेशान हो जाते हैं तब हमें गुरु महाराज की प्रार्थना याद आती है :-

कृपा ऐसी हो अहंकार भूल जाएँ हम, 
घृणा विद्वेषमय विचार भूल जाएँ हम.

कुछ बुराई न करें किसी को बुरा न कहें ,
सदा बुराई का प्रचार भूल जाएँ हम.

बुरे के साथ भी अब रह सकें भले होकर , 
किसी  प्रतिकूल  का प्रतिकार भूल जाएँ हम.

हमारे द्वार पर शत्रु भी मिलने आए, 
दें उसे प्यार तिरस्कार भूल जाएँ हम।

सदा कुछ भी न रहेगा सहारा  किस का लें, 
छूट जायेंगे जो आधार भूल जाएँ हम.

अपना कर्त्तव्य न भूलें कहीं प्रमादी बन, 
किसी पर अपना जो अधिकार भूल जाएँ हम। 

बिना प्रयास के जो ध्यान में आते रहते, 
पंच भूतों के वे आकार भूल जाएँ हम।

त्याग हो जाय मोह ममता का शांति मिले,
मन से माना हुआ संसार भूल जाएँ हम। 

ध्येय है ज्ञेय है अविनाशी देहातीत स्वरुप, 
वस्तु के प्रति ममत्व प्यार भूल जाएँ हम। 

भूलते आये  हैं परमार्थ की बातें अब तक,
जगत में स्वार्थ का व्यवहार भूल जाएँ हम। 

याद रखें सदा उस सत्य को जिसमे  रहते , 
'पथिक'  असत को वार पार भूल जाएँ हम। 

एक अविस्मरणीय प्रार्थना

 आज ५वें दर्जे तक के प्राइमरी स्कूल में  प्रात: काल पहुँचते ही गाये जाने वाली प्रार्थना याद आ गयी - शायद क्षुद्र   स्वार्थी इसमें दूरबीन से खोट ढूंढने का प्रयत्न करेंगे तब भी उन्हें इसमें साम्प्रदायिकता तो मिलने वाली नहीं -
प्रार्थना इस प्रकार है:-
"वह शक्ति हमें दो दयानिधे ,
कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें। 

पर सेवा पर उपकार में हम,
निज जीवन सफल बना जावें। 

हम दीन दुखी  निबलों बिकलों के,
सेवक बन संताप हरें। 

जो हैं अटके भूले भटके,
उनको तारें खुद तर जावें। 

निज धर्म कर्म मर्यादा का,
प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे, 

जिस देश जाति  में जन्म लिया,
बलिदान उसी पर हो जावे. 

शनिवार, 2 अगस्त 2014


संकलन 

संत वचन - जो संसार के  में विश्वास करते हैं वाही अहंकारी अभिमानी होते हैं. बड़ी से बड़ी अच्छाई अभिमान आने से बुराई में बदल जाती है ;-

सभी कुछ प्रभु देते जाते आप हैं, अकथ है जो कुछ दिखाते आप हैं ;
देखता हूँ किस तरह कितनी कठिन मुश्किलों से भी बचाते  आप हैं 
जहाँ पर भी हमें गिरते देखते वहीँ से ऊँचे उठाते आप हैं. 
मोह ममता में फंसे इस जीव को जिस तरह भी हो छुड़ाते आप हैं. 
डूबते देखा जहाँ दुःख सिंधु में, किनारे आकर लगाते  आप हैं 
जहाँ  मेरे लिए जो भी उचित है युक्तियाँ सारी दिखाते आप हैं ;
जानता  हूँ में 'पथिक ' कितना पतित उसे भी पावन  बनाते आप हैं।  -
  

बुधवार, 30 जुलाई 2014

  पकते हुए फल की हिफाजत में ढील देने से सड़ने की गति तीव्र हो जाती है